रेंगते-फुफकारते जुलूसों को
मुझे दु:ख है --
कि चारादीवारियों के अन्धखोह में
घुटती-घुलती भीड़ की गुमासुमाहट
मैं उससे करता हूँ आह्वान--
जागो, उठोऔर
बेतहाशा भागो!
उन कब्रिस्तानी राजमार्गों पर,
हो रहा है--
यातनाओं का साधारणीकरण,
अपाहिज औरतें, और दुधमुंही बच्चियां
यंत्रवत गुजर रही हैं
बलात्कार-चक्र से,
शिशु चलाकर चलकर घुटनों से ढो रहे हैं --
ईंट, गारे, सरिए
और तरस रहे हैं
मैं दीवारों के पीछे
चौंधियाते बुद्धू बक्से पर
टंकी-टिकीऔर
पथराई आँखें भीड़ की
गुहार रहा हूं,
अमोघ वज्रास्त्र बनो
और बरप पड़ो
तदित तड़ित कहर बनश्वेत दैत्यों के ऐशागाहों ऐशगाहों पर
खौफनाक राजदंशों से
मंचित किया जाता रहा है
एक लोकतांत्रिक स्वांग
जिसे भीड़तंत्र कर दे अभी ख़त्म
और प्रयाण करे वहां
राष्ट्रभक्ति के मुहावरेदार जुमले