Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम. जमाल संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> मधुमासी दिन बी…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna}}
रचनाकार=सर्वत एम. जमाल
संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
मधुमासी दिन बीत चुके हैं

सुख के सागर रीत चके हैं

आज महाभारत से पहले

कौरव बाजी जीत चुके हैं

आँगन आँगन सन्नाटा है


दुखियारों की रात बड़ी थी

पैरों में ज़जीर पडी थी

दशरथ तो वर भूल चुके थे

कैकेयी की आँख गडी थी

पुरखों की गति सिखलाती है

धर्म निभाने में घाटा है



ताने बाने बिखरे बिखरे

सभी सयाने बिखरे बिखरे

जीवन ने वो रूप दिखाया

हम दीवाने बिखरे बिखरे

पहले मन में क्रांति बसी थी

अब तो दाल, नमक, आटा है.</poem>