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पानी को तरसती नदी तल पर,
वह खड़ा है--उसी तरह
अपने सिर से आसमान भेदते हुए
अपनी काली-चमकदार मूंछों पर ताव देते हुए
या, सड़क-किनारे गुमटी के पास
गरमा-गरम चाय चुसुकते हुए
और ढल रहे लोगों के हाथ में
अखबारों की सूर्खियां पढते पढ़ते हुए
कप की चाय के बासी होते-होते
जो बाद मेरे भी
बूढ़े लोगों के दिमाग में बना रहेगा--
जेब में हाथ डाले हुए बाबुओं के होठो होठों पर
तिल-तिल कर दम तोड़ रही
---सिगरेट की तरह।