कुंभ नगर के नागरिकों की बस्ती देखी
भोर, दोपहर, संझा और रात की बेला
सजे एक से एक अखाड़े मस्ती देखी।"'सब के दाताराम'-अर्थ क्या है," यह चेलापूछ रहा था; बोले गुरू, देख आ मेलाबैरागी रागी है और माल खाते हैंमूढ़, विधाता का है यह छोटा सा खेलादेख कुली मज़दूर वस्तु ढो कर लाते हैंमज़दूरी के पैसे पर धक्के पाते हैंसाधु-संत सोते हैं सुखी पाँव फैलाएकितने ही लखपती पास उन के आते हैंचरणधूलि लेते हैं, वहीं स्वर्ग से आए। बमभोले शंकर गाँजे का, सुलफ़े का दमलिया गुरू ने; लवर उठी, फिर बोले, बम बम ।
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