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तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास
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08:26, 15 जुलाई 2010
जड़ चेतन गुन दोषमय विश्व कीन्ह करतार!
संत हंस गुन गहहीं पथ परिहरी बारी निकारी!!
तुलसी इस संसार में. भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥
</poem>
Shaktipravesh
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