<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : घमासान हो रहाजो मिरा इक महबूब है<br> '''रचनाकार:''' [[भारतेन्दु मिश्रअरुणा राय]]</td>
</tr>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
आसमान लाल-लाल हो रहाजो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है धरती आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है पकड़ उसकी सख़्त है पर घमासान हो रहा।छूना उसका दूब है हैं पाँव उसके चंचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं
हरियाली खोई जो मिरा इक महबूब हैनदी कहीं सोई । मत पूछिए क्या ख़ूब हैफसलों पर फिर किसान रो रहा। सुख की आशाओं परखंडित सीमाओं परसिपाही लहूलुहान सो रहा। चिनगी के बीज लिएविदेशी तमीज लिएपरदेसी यहाँ धान बो रहा।....
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