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कृतज्ञ / मनोज श्रीवास्तव
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07:05, 16 जुलाई 2010
परोसा भूखे तन की थाली में
स्नेह का सतरंगा व्यंजन,
उडेला
उड़ेला
प्यासे मन की प्याली मेंजीवन-संगीत का गुंजन
.....
झुलाया, अलमस्त सांसों की डोर पर
नचाया,
धडकते
धड़कते
दिल की मृदंगी थाप पर
विचराया, आहों के सागर-तट पर
Dr. Manoj Srivastav
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