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जी ही लेती है/ चंद्र रेखा ढडवाल
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15:18, 16 जुलाई 2010
उजाले / अँधेरे से
लुका-छिपी करती
सब कुछ
को बस
छू कर निकल जाती
पानी पर बनी लकीरें मिटाती
और
औरत
भीजी ही लेती है
.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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