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पुल भर मैं / चंद्र रेखा ढडवाल
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15:32, 16 जुलाई 2010
पर रही बस
बिछती जाती हरी दूब ही
नहीं
पहुँचती
पहुँची
मेरे कन्धों तक
कि सहलाती मुझे
नहीं तनी माथे तक
द्विजेन्द्र द्विज
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