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एक-निष्ठ धुरी / चंद्र रेखा ढडवाल
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15:44, 16 जुलाई 2010
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<poem>
देखने की
दिखते रहने की चाह
भीतर से बाहर को
जाने का मोह
घूमते पहिए की
गति
-
ऊर्जा
-
सम्मोहन
सब पुरुष
***
द्विजेन्द्र द्विज
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