1,021 bytes added,
12:48, 18 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=कहाँ हैं वे शब्द / रमेश कौशिक
}}
<poem>
ऊँचे-ऊँचे
उड़ते रहना नीलगगन में
देख परिन्दे!
जब तक ऊँचाई पर होगे
पूर्ण सुरक्षित बने रहोगे
सब आकाश तुम्हारा होगा
जो चाहोगे सो गाओगे
जब भी धरती पर आओगे
तुम्हे मिलेंगे सौ-सौ फन्दे |
कौन जानता किस फन्दे में
फँस जाएँगे पंख तुम्हारे
कनक कणों के चुग लेने पर
मर जाएँगे गीत बिचारे
कदम-कदम पर जाल बिछाए
बैठे हैं खूँख्वार दरिंदे|
</poem>