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14:10, 19 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह = कहाँ हैं वे शब्द / रमेश कौशिक
}}
<poem>
तुम्हें किसी ने नहीं देखा
किसी ने नहीं जाना
किसी ने नहीं पहचाना
किंतु मेरे मित्र
यह सब झूठ है, छल है|
तुम भूल जाते हो
मेरे अंत:-प्रदेश में एक्स-किरण है
जो तुम्हारी सच्ची तस्वीरें
चुपके-से खींचती है|
मैं उन तस्वीरों को
बीच बाज़ार में खड़े होकर बेचता हूँ
लेकिन जब तुम उन्हें खरीदते हो
तो मेरी तस्वीरें समझते हो
और यह भूल जाते हो
कि ये सब तुम्हारी तस्वीरें हैं|
</poem>