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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<Poem> पीत पीत हुए पात सिकुड़ी -सिकुड़ी सी रात ठिठुरन का अन्त आ गया देखो बसन्त आ गया ।
मादक सुगन्ध से भरी पन्थ पन्थ आम्र मंजरी कोयलिया कूक कूक कर इतराती फिरस बबरी जाती है जहाँ दृष्टि मनहारी सकल स्रष्टि लास्य दिग्दिगन्त छा गया देखो बसन्त आ गया।
शीशम के तारुण्य का आलिंगन करती लता रस का अनुरागी भ्रमर कलियों का पूछता पता सिमटी सी खड़ी भला सकुचायी शकुन्तला मानो दुष्यन्त आ गया देखो बसन्त आ गया।
पर्वत का ऊँचा शिखर ओढ़े है किंशुकी सुमन सरसों के फूलों भरा मादक बासन्ती उपवन करने कामाग्नि दहन केशरिया वस्त्र पहन मानों कोई सन्त आ गया देखो बसन्त आ गया।।</poem>
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