कम्प्यूटर और इंटरनेट पर हिन्दी में काम करने और इसके प्रचलन को बढ़ावा देने के आंदोलन की शुरुआत 1990 के दशक में शुरु हुई। यह कोई संगठित आंदोलन नहीं था लेकिन विभिन्न व्यक्तियों ने अपने-अपने स्तर और रुचि के मुताबिक हिन्दी को कम्प्यूटर पर प्रयोग करना शुरु कर दिया था। श्री विनय छजलानी ने सुवि इंफ़ोर्मेशन सिस्टम की स्थापना 1993 में की। आज हम इस कम्पनी को वेबदुनिया के नाम से जानते हैं। वेबदुनिया ने हिन्दी पैड नामक एक सॉफ़्टवेयर बनाया जिस पर हिन्दी भाषा में टाइप किया जा सकता था। हिन्दी फ़ॉंट्स की अनुपलब्धता ने भी लोगो का ध्यान आकर्षित किया और इस दिशा में भी प्रयास तेज हुए। वेबदुनिया ने कई हिन्दी फ़ॉंट्स का निर्माण किया। मार्च 1997 में श्री हर्ष कुमार ने "सुशा" नामक फ़ॉन्ट को मुफ़्त में वितरित करना आरम्भ किया। सुशा काफ़ी हद तक फ़ोनेटिक आधारित थी (अर्थात शब्द को जैसे बोला जाता है वैसे ही उसे टाइप भी किया जाता है)। श्रीमति पूर्णिमा वर्मन द्वारा संचालित प्रसिद्ध हिन्दी वेब-पत्रिकाएँ "अनुभूति" और "अभिव्यक्ति" आरम्भ के वर्षों में इसी इसी सुशा फ़ॉन्ट पर आधारित थी। श्री मैथिली गुप्त ने "कृतिदेव" नामक फ़ॉन्ट का निर्माण किया। यह फ़ॉन्ट शायद सबसे अधिक प्रचलित हिन्दी फ़ॉन्ट्स में से एक है। सुशा और कृतिदेव के प्रयोग से बहुत-सी हिन्दी वेबसाइट्स बनी और छापेखानो में भी इनका प्रयोग काफ़ी हुआ। यहाँ मैं एक सूची दे रहा हूँ जिसमें कुछ ऐसे व्यक्तियों के नाम और योगदान हैं जिन्होनें हिन्दी को इंटरनेट पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही हैं। कृपया ध्यान दें कि यह सूची पूरी नहीं है। मुझे विश्वास है कि मैं बहुत से महत्वपूर्ण नाम इस सूची में नहीं दे पा रहा हूँ -ऐसा केवल इस बारे में मेरी अज्ञानता के कारण है। मैं उन सभी व्यक्तियों को नमन करता हूँ जिन्होनें हिन्दी भाषा के विकास में कोई भी सकारात्मक भूमिका अदा की है। * श्री विनय छजलानी ने 1993 में सुवि इंफ़ोर्मेशन सिस्टम नामक कम्पनी की स्थापना की जो की बाद में वेबदुनिया नाम से प्रसिद्ध हुई। इस कम्पनी के काम की प्रशंसा माइक्रोसॉफ़्ट ने भी की और इनके साथ सहयोग करने की पेशकश की* श्री वासु श्रीनिवास ने जनवरी 1998 में बराहा नामक सॉफ़्टवेयर बनाया जिसकी मदद से हिन्दी सहित कई भारतीय भाषाओं मे लिखा जा सकता था
* श्री अभिषेक चौधरी और डा. श्वेता चौधरी ने हिन्दवी नामक सिस्टम बनाया जिससे कि हिन्दी भाषा में प्रोगरामिंग करना संभव है
* श्री हरिराम ने हिन्दी कोर कम्प्यूटिंग को आसान बनाने के लिये महत्वपूर्ण योगदान किया। वे सीडैक से भी संबंधित रहे हैं
* श्री आलोक कुमार ने देवनागरी.नेट, लिप्यांतरण औजार "गिरगिट" और शून्य नामक तकनीकी साइट आरम्भ की
* श्री देबाशीष ने पहला लोकप्रिय ब्लॉग एग्रीगेटर "चिट्ठाविश्व" का निर्माण किया
* श्री राघवन जी तथा एवं सुरेखा जी ने एक आई.एम.ई बनाया। यह जावास्क्रिप्ट पर आधारित था और इसकी मदद से और भी कई औज़ार बने।
* श्री रमण कौल ने हिन्दी के इनस्क्रिप्ट तथा रेमिंगटन ऑनलाइन कीबोर्ड उपलब्ध कराए
* श्री रवि रतलामी ने लिनिक्स का हिन्दी इंटरफ़ेस बनाया
* हग की मदद से श्री हिमांशु सिंह ने "हिन्दी-तूलिका" औजार बनाया
* रजनीश मंगला ने हिन्दी फ़ॉन्ट्स परिवर्तन करने के लिये औजार बनाए
* श्री मैथिली गुप्त ने “कृतिदेव” नामक लोकप्रिय फ़ॉन्ट बनाया, जिसे अब माइक्रोसॉफ़्ट ने अपने तमाम विन्डोज़ सिस्टम्स में इंस्टाल किया हुआ है। मैथिली जी "हिन्दी पैड" नामक औज़ार भी बनाया
ऊपर दिये गये लगभग सभी उदाहरणों की ख़ास बात यह है कि इनके सुविधाओं के रचयिताओं ने इन्हें प्रयोक्ताओं को मुफ़्त उपलब्ध कराया। यह एक प्रमुख कारण था कि इंटरनेट पर हिन्दी तेज़ी से आगे बढ़ सकी। इन लोगो को इंटरनेट पर हिन्दी के प्रणेता कहा जा सकता है।
==यूनिकोड क्या है?==
चलिये अब बात करते हैं यूनिकोड की। इंटरनेट पर हिन्दी के विकास को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला हिस्सा वह जबकि ग़ैर-यूनिकोड फ़ॉन्ट्स का प्रयोग करते हुए हिन्दी टाइप की जाती थी। सुशा, कृतिदेव और इनके अलावा उस समय के अन्य सभी फ़ॉन्ट्स गैर-यूनिकृत थे यानी ये फ़ॉन्ट्स यूनिकोड पर आधारित नहीं थे। इन फ़ॉन्ट्स में लिखी गई सामग्री केवल उन्हीं कम्प्यूटरों पर पढ़ी जा सकती है जिन पर इस्तेमाल किया गया फ़ॉन्ट मौजूद हो। यह एक बड़ी दिक्कत थी लेकिन यह परेशानी तब दूर हो गई जब हिन्दी का यूनिकोड निर्धारित हो गया। हिन्दी को यूनिकोड दिलाने की सख़्त आवश्यकता को पूरा करने की शुरुआत श्री आलोक कुमार ने देवनागरी.नेट वेबसाइट के ज़रिये की थी। हिन्दी भाषा के लिये यूनिकोड का निर्धारण हो जाने को शायद इंटरनेट पर हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी क्रांति कहा जा सकता है। इसके बाद तो जैसे इंटरनेट पर हिन्दी वेबसाइट्स की जैसे बाढ़-सी आ गई। जो सबसे वैबसाइट सबसे अधिक बनी वे ब्लॉग्स थीं। कुछ ही वर्षों में ब्लॉग वेबसाइट्स की संख्या कई हज़ार के ऊपर निकल गई।
कम्प्यूटर अक्षरों को नहीं समझता -वह केवल उन अक्षरों के लिये निर्धारित कोड को समझता है। जब आप कम्प्यूटर पर अंग्रेज़ी में A टाइप करते हैं तो वास्तव में कम्यूटर की नज़र में आपने ASCII code 65 टाइप किया है। ASCII इसी तरह हर अंग्रेज़ी अक्षर, अंक और चिन्ह के लिये निर्धारित कोड्स का एक मानक है। यह मानक 128 अक्षरों, अंको और चिन्हों को अलग-अलग कोड दे सकने में सक्षम है। इसलिये यह अंग्रेज़ी में प्रयोग होने वाले अक्षरों, अंको और चिन्हों के लिये तो काफ़ी है लेकिन दुनिया की हज़ारों भाषाओं में प्रयोग होने वाले लाखों अक्षरों, अंको और चिन्हों को अलग-अलग कोड दे सकने के लिये यह मानक काफ़ी नहीं है। यूनिकोड एक नई प्रणाली है जिसके ज़रिये दुनिया की सभी भाषाओं के सभी अक्षरों, अंको और चिन्हों में से हरेक को अलग-अलग कोड दिया जा सकता है। जब तक किसी अक्षर को कोई मानक चिन्ह नहीं मिलता तब तक कम्प्यूटर उस अक्षर के साथ काम नहीं कर पाता। हिन्दी को जब से अपने हरेक अक्षर, अंक और चिन्ह के लिये यूनिकोड के कोड्स मिले हैं तब से कम्प्यूटर के लिए लिखे जाने वाले सॉफ़्ट्वेयर ने हिन्दी को मानक रूप में पहचानना और दिखाना आरम्भ कर दिया है।