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उदास रंग / गोबिन्द प्रसाद

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<poem>

तुम एक उदास रंग हो
मैं जिसमें ख़ुश नज़र आ रहा हूँ
पहले से ज़्यादा
तुम मेरे लिए अब आईना बन गये हो
जिसमें घुल गया है
उम्र भर का सन्नाटा
जिसमें घुल गया है थकान का चेहरा
घुल गया है जिसमें पानी का अतल
सो गये हैं राग सारे खुली आँखों
डूबते सूरज की भाषा में विकल

अँधेरी रात है
तुम हो
हवा की तरह चुपचाप
भर रहे हो मन का सुनसान

तारे की भाषा यही रही है सदियों से
यही रहा है जीवन का छन्द-गान
खण्डहर होता मक़बरा ही
बन गया है मेरी पहचान...
<poem>
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