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09:51, 22 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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वचन
नहीं क्षणभंगुर होते
मुझे सत्य तो यही ज्ञात था
अब हंसती हूँ सोच सोच कर
तत्व तुम्हारा
क्यों अज्ञात था
वचन भला सुख क्या दे सकते
क्षणभर जिनकी याद रहे ना
संकट था आसन्न यही तो
दोष तुम्हारा प्रिये कहाँ ..
नहीं वचन वो स्नेहिल मन था
जिस पर मैंने जग वारा था
कितने वचनों से बंध -बिंध कर
टूट गया सुंदर तारा था
वचन दिए थे जो भी तुमने
आधिपत्य का क्षणिक भावः थे
पार उतरती नाव कहा वो
जिस पर सागर के प्रभाव थे
फिर भी तो संतोष तुम्हे हो
मान मान कर हार गयी मैं
वचन रहे मिलते जीवन भर
सत् बल था जो पार गयी मैं
</poem>