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कमबख्त हिन्दुस्तानी / मनोज श्रीवास्तव
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10:42, 18 अक्टूबर 2010
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<poem>
''' कमबख्त हिन्दुस्तानी '''
आगे
थोड़ा और आगे
उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन पर आँखें गड़ाए क्यों
खडे
खड़े
हो
हाँ, हाँ, कोशिश करो
Dr. Manoj Srivastav
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