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दबाव / त्रिलोचन
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13:49, 22 जुलाई 2010
<poem>
भीड़ कस उठी थी, पच्चर से लोग बन गए,
वह दबाव था, जौ भर
किअसी
किसी
तरह हिल पाना
अब असाध्य था । खड़े लोग निरुपाय तन गए ।
जो छूटा, छूटा; अब मुश्किल था मिल पाना ।
अनिल जनविजय
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