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15:14, 25 जुलाई 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
कहाँ छुपा दी है रात तूने
कहाँ छुपायें है तूने अपने गुलाबी हाथों के ठंडे फाये
कहाँ हैं तेरे लबों के चेहरे
कहाँ है तू आज-तू कहाँ है?
ये मेरे बिस्तर पे कैसा सन्नाटा सो रहा है?
</poem>