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10:22, 26 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
बचपन से अभी तक भूल न सका वह सुख
और डूबा हूं अभी तक इतना कि थकता नहीं
पिता के साथ घूमने से आया वह लुत्फ कि वे बताते रहे उनके रंगों का जादू
दौड़ता था छुडा़कर अंगुली उनके पीछे
कितने भिन्न थे उनके रंग एक-दूसरे से और अप्रतिम कितने
गांव में तो नारंगी-भूरे रंग की अधिक
उनके पंखों पर सफेद चित्तियां
जो काले सुंदर वृत्ताकार गोलों के बीच आलोकित
और वे जो कभी-कभार ही दीख पड़ती हैं
कुछ-कुछ भूरी और चमक लिए लाल
देह पर उनकी पीले रंगों की मनोहारी छटा
बारिश के दिनों में खूब मिलती
किसी कोमल पत्ती या शाखा पर पंख डुलाती
ध्यान से देखने का इतना नशा गजब
कि देख पाता वह सुंदर रेशमी करधनी
जो बरसती बूंदों की सिहरन में भी चमकती
अब तो उम्र को पारकर कितना आगे
लेकिन जो देखकर आया उकसी याद सजीव
एक वो पहाड़ पर मिली
पत्तियों के नीड़ में दुबकी सी दुल्हन
गुलाबी और लाल रंग की जुगलबंदी में
बीच में काला अरे ! नहीं काजल की आभा
और वहीं एक नन्हीं सी शायद बहन या बेटी
गहरे भूरे रंग की जिसके बीचों-बीच
एक लाल रंग की रेखा जैसे कोई रंगनदी बहती
कितना कुछ भरना चाहता हूं अद्भुत संसार भीतर
और भूलता जाता हूं कि वे
एक पल में उड़ जाती है कहीं और
मैंने बर्फीले इलाके में भी उन्हें देखा
और दौड़ा उनके पीछे संभलता-गिरता
उनका रंग मद्धिम फिर भी चित्ताकर्षक
उनकी हल्की नीलाभ-श्वेत चित्तियां
कितने कम तापमान में उसका
निर्वस्त्र उड़ना और बर्फाच्छादित जगहों पर
आनंदपूर्वक आसन जमाना
मानो किसी ऋषिकुल में उसका जन्म
कितनी रोशन स्मृतियां हैं
आंखें जिनकी वजह से कोमल हुई
उनके आश्रयस्थलों तक
कभी-कभार की मेरी पहुंच और
जीवन के अविस्मरणीय अनुभव
जीवन के अविस्मरणीय अनुभव
कि मैंने रंगों में बसी
उस सृष्टि को देखा जो कारगर बहुत
और ऐसे समय में
कि जब धुआं और अंधेरा बढ़ता चौतरफ
मैंने स्मृतियों में बचाना चाहा
और हारा स्मरण-शक्ति से कितना
वे बची रहेंगी आगे भी संदेह बहोत
विलुप्ति के इस मारक समय में
मैं उन्हें कैसे बचा पाऊंगा अकेला
सिवाय प्रेम के क्या है मेरे पास ?
मैं उनके लिए इस कीमती प्रेम को
सौंपता चाहता हूं बच्चों को
जो किसी और काम में डुबे हैं
मेरी आवाज उनके कानों से टकराकर
पराजित लौट रही है बार-बार
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