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''' आरण्यक '''
एक दिन हम खो जाएँगे
छिप जाएंगे जाएँगे दुनिया से
रहने लगेंगे
अदृश्य कोटर में
पेड़ में गजमुख
आसमान की पीठ पर चन्द्रमा
डालियां डालियाँ सूखी छितराई आसपास
सभी पूछेंगे
हम एक दूसरे को देखेंगे और
कुछ भी कहने से पहले
मुस्कराएंगे मुस्कराएँगे
फिर भी कुछ भी बताना हमें
निरर्थक लगेगा
एक दिन हम छोड़ जाएंगेजाएँगे
यह घर ये दीवारें या आँगन
यह छत
यह किताबों का गट्ठर
कागजों काग़ज़ों का अम्बार बेतरतीब
बेसंभाल
फिर हम खोजने नहीं आएँगे
इनमें दबी हुई चिट्ठियां चिट्ठियाँ अखबारों अख़बारों की कतराने कतरनें
प्रियजनों की पदचाप
अपने हुनर की गुमनाम परछाईयाँ
कूट भाषा में प्रेम
खेल के रहस्यमय इशारे
कोई फोन फ़ोन नंबर
जो काम आता रहा हो बुरे दिनों में
एक दिन हम छिप जाएंगे जाएँगे
चन्द्रमा की परिधि के आसपास
हंस तैर रहे होंगे
बत्तखें कर रही होंगी कल्लोल
हमारे वजूद से बेखबर बेख़बर
एक साथ कई नीलकंठ सगुन मनाते
फिर हमें अचानक याद आएगा
नहीं की हमने कोई वसीयत समय रहते
नहीं किया कोई बंटवाराबँटवारा
घर-द्वार
हाट-दुकान का
दुनिया से निबटना
एक दिन असफलताएं असफलताएँ चुपके से
आकर बता जाएँगी
एक जन्म का वृत्तांत
कि कैसे दीमकों ने जाह जगह बना ली
शरीर के भीतर
सफाचट कर गईं अलमारियां अलमारियाँ बहीखाते
बढ़ा-चढ़ाकर हमारा दुःख हमारी भूलें
बयाँ करेंगी असफलताएं असफलताएँ
जिनसे भागकर हम आ छिपे यहां यहाँ
सुनसान जगहों में
हम अब झुकेंगे नहीं उनके आगे
उन्हें अनसुना कर
कहीं और खिसका जाएंगे जाएँगे
कहीं और जा छिपेंगे
कि कोई पहचाने तो पहचाने
नहीं तो खुश ख़ुश रहे मदमाते ऐश्वर्य में
यह उजाड़ जैसा भी हो
रिश्ते टूटते हैं
तो हर बार नए-नए
बन ही तो जाते हैं.।</poem>