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15:11, 3 अगस्त 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=अशोक लव
|संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
}}
<poem>
ठंडी जमी मोम सब सह जाती है
छोटी सी
पतली-सी सुई
उतर जाती है आर-पार
बिंध जाती है मोम
तपती है जब मोम
आग बन जाती है
चिपककर झुलसा देती है
समयानुसार
जीवन को मोम बनना पड़ता है
</poem>