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14:55, 5 अगस्त 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
शहर में आदमी कोई भी नहीं क़त्ल हुआ
नाम थे लोगों के जो क़त्ल हुए
सर नहीं कटा किसी ने भी कहीं पर कोई
लोगों ने टोपियाँ काटी थीं, कि जिनमे सर थे
और ये बहता हुआ, लहू है जो सड़क पर
सिर्फ आवाजें-ज़बा करते हुए खून गिरा था
</poem>