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माहिये-२ / रविकांत अनमोल

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<poem>६
जब फूल महकते हैं।
हूक सी उठती है,
कुछ ़दर्द सुलगते हैं।

देखा है बहारों में।
फूल नहाते हैं,
किरनों की फुहारों में।

जन्नत में क्या होगा।
नूर की बगिया में,
इक फूल खिला होगा।

फरियाद किया करना।
फुर्सत में हमको भी,
तुम याद किया करना।

१०
ये वक़्त है जाने का।
मिल के बिछुड़ना ही,
दस्तूर ज़माने का।
</poem>
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