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माहिये-३ / रविकांत अनमोल

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<poem>११
भीगी सी फ़ज़ाएं हैं।
आंसू आंखों में,
होंटों पे दुआएं हैं।
१२
अलमस्त हवाएं हैं
मौसम भीगा सा,
खुशरंग फ़ज़ाएं हैं।
१३
ख़ुशरंग गुलाबों सा।
आँख में रहता है
तेरा रूप है ख़ाबों सा।
१४
पत्तों का है रंग पीला।
अश्क़ों की बारिश ने
चिट्ठी को किया गीला।
१५
दिन रैन बरसते हैं।
दीद की चाहत में
दो नैन तरसते हैं।
</poem>
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