* [[मधु के दिन मेरे गए बीत / नरेन्द्र शर्मा]]
* [[सुख-सुहाग की दिव्य-ज्योति से / नरेन्द्र शर्मा]]
*[[ गँगा, बहती हो क्यूँ ?? / नरेन्द्र शर्मा]]
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गँगा तुम, बहती हो क्यूँ ??
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्ल्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ??
इतिहास की पुकार, करे हूँकार,
ओ गँगा की धार, निर्बल जन को, सबल सँग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गँगा तुम, बहती हो क्यूँ ??
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्ल्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ??
इतिहास की पुकार, करे हूँकार, ओ ग़ँगा की धार,
निर्बल जन को, सबल सँग्रामी, गमग्रोग्रामी,बनाती नहूँ हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हूँकार,ओ गँगा तुम, बहती हो क्यूँ ??
अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो कयूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ ?
ओ ग़ँगा की धार, निर्बल जन को, सबल सँग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहूँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गँगा तुम, बहती हो क्यूँ ??
अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिनजन,
अज्ञ विहिननेत्र विहिन दिक` मौन हो कयूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ऑ गँगा तुम, बहती हो क्यूँ ??
१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)१९:१४, २७ मई २००८ (UTC)[[विशेष:Contributions/208.102.250.216|208.102.250.216]]
सँरचना : स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा / सँकलन : लावण्या