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10:31, 8 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
मैं थक चुका हूँ
रोज़-रोज़
सुनते-सुनते
तुम्हारी दण्ड-संहिता
लग भी जाने दो अब
इस जंगल में पलीता
देखता हूँ
इसके बाद मरता हूँ
या
जीता
</poem>