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कांच के ख्वाब / गुलज़ार
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10:34, 8 अगस्त 2010
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<poem>
देखो आहिस्ता चलो,और भी
अहिस्ता
आहिस्ता
ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पावँ रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
Abha Khetarpal
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