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व्यर्थ / काका हाथरसी

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काका या संसार में, व्यर्थ भैंस अरु गाय ।

मिल्क पाउडर डालकर पी लिपटन की चाय ॥

पी लिपटन की चाय साहबी ठाठ बनाओ ।

सिंगल रोटी छोड़ डबल रोटी तुम खाओ ॥

कहँ ‘काका' कविराय, पैंट के घुस जा अंदर ।

देशी बाना छोड़ बनों अँग्रेजी बन्दर ॥

जप-तप-तीरथ व्यर्थ हैं, व्यर्थ यज्ञ औ योग ।

करज़ा लेकर खाइये नितप्रति मोहन भोग ॥

नितप्रति मोहन भोग, करो काया की पूजा ।

आत्मयज्ञ से बढ़कर यज्ञ नहीं है दूजा ॥

कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा ।

मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा ॥
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