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'ल्यूना-पन्द्रह' उड़ गया, चन्द्र लोक की ओर ।
 
पहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोर ॥
 
मचा विश्व में शोर, सुन्दरी चीनी बाला ।
 
रहे चँद्रमा पर लेकर खरगोश निराला ॥
 
उस गुड़िया की चटक-मटक पर भटक गया है ।
 
अथवा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया है ॥
 
कहँ काका कवि, गया चाँद पर लेने मिट्टी ।
 
मिशन हो गया फैल हो गयी गायब सिट्टी ॥
पहुँच गए जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंग ।
 
शायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना 'रोंग' ॥
 
काव्य कल्पना 'रोंग', सुधाकर हमने जाने ।
 
कंकड़-पत्थर मिले, दूर के ढोल सुहाने ॥
 
कहँ काका कविराय, खबर यह जिस दिन आई ।
 
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई ॥
पार्वती कहने लगीं, सुनिए भोलेनाथ !  
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ ॥
 
'चन्द्र' आपके माथ, दया हमको आती है ।
 
बुद्धि आपकी तभी 'ठस्स' होती जाती है ॥
 
धन्य अपोलो ! तुमने पोल खोल कर रख दी ।
काकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर दी ॥
काकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर दी ॥
सुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे चोट ।
 
चमक चाँद से भी अधिक कर दे लोटम पोट ॥
 
कर दे लोटम पोट, इसी से दिल बहलाएँ ।
 
चंदा जैसी चमकें, चन्द्रमुखी कहलाएँ ॥
 
मेकप करते-करते आगे बढ़ जाती है ।
अधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती है ॥
अधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती है ॥
प्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसान ।
 
कंकड़ पत्थर देखकर लौट आए श्रीमान ॥
 
लौट आए श्रीमान, खबर यह जिस दिन आई ।
 
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई ॥
 
पोल खुली चन्दा की, परिचित हुआ ज़माना ।
कोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलाना ॥
कोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलाना ॥
वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान ।
 
प्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं इंसान ॥
 
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका ।
 
कहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो काका ॥
 
अगर वहाँ मानव रहते, हम चुप रह जाते ।
 
अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आते ॥
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