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झूठ माहात्म्य/ काका हाथरसी

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झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप

जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप

बैठा-बैठा टाप, देख लो लाला झूठा

'सत्यमेव जयते' को दिखला रहा अँगूठा

कहँ ‘काका ' कवि, इसके सिवा उपाय न दूजा

जैसा पाओ पात्र, करो वैसी ही पूजा
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