गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
झूठ माहात्म्य / काका हाथरसी
531 bytes added
,
12:51, 15 अगस्त 2010
नया पृष्ठ: झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टा…
झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप
जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप
बैठा-बैठा टाप, देख लो लाला झूठा
'सत्यमेव जयते' को दिखला रहा अँगूठा
कहँ ‘काका ' कवि, इसके सिवा उपाय न दूजा
जैसा पाओ पात्र, करो वैसी ही पूजा
D K Raghu
60
edits