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सिर्फ़ दो-चार के घर की दौलत नहीं
लाखों दिल एक हों जिसमें वो प्रेम है
दो दिलों की मुहब्बत मुहब्बत नहीं
अपने सन्देश से सबको चौंका दिया
प्रेम पे प्रेम का अर्थ समझा दिया
 
फ़र्द था, फ़र्द से कारवाँ बन गया
एक था, एक से इक जहाँ बन गया
 
ऐ बनारस तिरा एक मुश्त-गुबार
उठ के मेमारे हिन्दुस्ताँ बन गया
 
मरने वाले के जीने का अंदाज़ देख
देख काशी की मिट्टी का ऐज़ाज़ देख ।
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<ref>माशूक</ref>
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