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13:52, 22 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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<poem>
बोल उठी हलचल, ज़माना बदलेगा
आज नहीं तो कल, ज़माना बदलेगा*
पूंजीपति की साजिश है कितनी गहरी
संसद और अदालत है कितनी बहरी
जब गरज उठेंगे हम, ज़माना बदलेगा……
ये पुलिसिये झूठे और मक्कार सही
देश के नेता ये सारे गद्दार सही
जब चलेंगे हम एक साथ, ज़माना बदलेगा….
राज कर रहे देश पे सब पैसेवाले
भूखे सोते हैं सारे मेहनतवाले
जब अपना होगा राज, ज़माना बदलेगा…
1996, * एक मराठी जनगीतकार के गीत का मुखड़ा।
<poem>