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गुजरात-दो / मुकेश मानस

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यह एक आदमी है
आग की लपटों से घिरा हुआ
उसके हाथ हैं उठे हुए
और एक घने धुँए की लपटें हैं
बस इतना ही दिख रहा है
ये आदमी अपनी तस्वीर में

कौंन है ये आदमी?
हिंदू या मुसलमान
सिख या ईसाई
कोई शराबी या कोई जुआरी
या कोई कारोबारी
किसी स्कूल का अध्यापक
या किसी ट्रेड यूनियन का मैंबर

यह आदमी
अभी अभी जलाये गए
किसी बच्चे का पिता भी तो हो सकता है

यह आदमी कौंन है
यह जानना जरुरी नहीं है शायद
बस इतना काफी है
कि यह एक आदमी है
और एक जलती हुई मैटाडोर के
पिछ्ले हिस्से में खड़ा है

और सिर्फ़ खड़ा ही नहीं है
जल रहा है………..
2002
<poem>
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