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14:09, 22 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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<poem>
राजा जनता सोती है
सोती है तो और सुलाओ
राजा जनता रोती है
रोती है तो और रुलाओ
राजा जनता गाती है
गाती है तो क्यों गाती है
जाओ जाकर पता लगाओ
पता लगाओ और भरमाओ
राजा जनता आती है
कोई गाना गाती है
आती है तो सावधान तुम हो जाओ
जिस कुर्सी पर हम बैठे हैं
उसे छिपाओ
जनता को जाकर टरकाओ
ना टरके तो पुलिस बुलाओ
मार मूरकर उसे भगाओ
ना भागे तो गोली दागो
ठहरो ठहरो
गोली से तो अच्छा प्यारे
इस जनता को धर्म दिखाओ
धर्म नाम पर
लड़ लड़कर मर जायेगी
नाम धर्म का होगा प्यारे
अपनी कुर्सी भी बच जायेगी
1992, पुरानी नोटबुक से
<poem>