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14:27, 22 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
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<poem>
जो कहते हैं तुमसे
चुप रहो, कुछ मत कहो
असल में वो चाहते हैं
तुम उनके अन्याय सहो
जो कहते हैं तुमसे
तुम उनकी तरफ़ मुड़ो
असल में वो चाहते हैं
तुम अपने दर्द से ना जुड़ो
जो कहते हैं तुमसे
शांति, शांति, शांति
असल में वो डरते हैं
तुम्हारी मिट ना जाये भ्रांति
तुम कर ना दो क्रांति।
1997, पुरानी नोटबुक से
<poem>