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14:35, 22 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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<poem>
एक फालतू काग़ज़ हाथ में लेते ही
सामने आ खड़ा होता है
अनन्त हरियाली और अदभुत हलचल लिये
बरसों पुराना एक पेड़
काग़ज़ फाड़ना शुरू करते ही
पेड़ की मजबूत गठीली शाख़ों पर
महकती हुई खूबसूरत पत्तियाँ
पीली पड़ने लगती हैं
और धुंधलाने लगता है शाखाओं का गाढ़ा रंग
महज़ एक फालतू काग़ज़ फाड़ते ही
अपनी मजबूत शाखाएं
और हजारों-हजार पत्तियाँ लिये
अपनी सारी हरियाली और हलचल लिये
बरसों पुराना एक पेड़
अंधकार में विलीन हो जाता है चुपचाप………
कोई क्यों सहेज रखे आख़िर
कोई फालतू काग़ज़
वह चाहे वर्षों पुराना
एक पेड़ ही क्यों ना हो……
2002
<poem>