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यादों के फूल / शाहिद अख़्तर

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'''यादों के फुल'''

...और बरसों बाद
जब मैंने वह किताब खोली
वहां अब भी बचे थे
उस फूल के कूछ जर्द पड़े हिस्से
जो तुमने कालेज से लौटते हुए
मुझे दिया था

हां, बरसों बीत गए
लेकिन मेरे लिए तो अब भी वहीं थमा है वक्‍त
अब भी बाकी है
तुम्हारी यादों की तरह
इस फूल की खुशबू

अब भी ताजा है
इन जर्द पंखुडि़यों पर
तुम्हारे मरमरीं हाथों का
वह हसीं लम्‍स
उससे झांकता है तुम्‍हारा अक्‍स

वक्त के चेहरे पे
गहराती झुर्रियों के बीच
मैं चुनता रहता हूं
तुम्‍हारा लम्‍स तुम्‍हारा अक्‍स
तुम्हारी यादों के फुल

कभी आओ तो दिखाएं
दिल के हर गोशे में
मौजूद हो तुम
हर तरफ गूंजती है बस तुम्‍हारी यादों की सदा
बरसों बाद जब मैंने ...
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