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नया पृष्ठ: '''खोमोशी के खिलाफ''' दर्द हो तो मदावा भी होगा हमारी खामोशी जुर्म हो…
'''खोमोशी के खिलाफ'''

दर्द हो तो
मदावा भी होगा
हमारी खामोशी
जुर्म होगी
अपने खिलाफ
और हम भुगत रहे हैं
इसकी ही सजा
लब खोलो
कुछ बोलो
कोई नारा, कोई सदा
उछालो जुल्‍मत की इस रात में
आवाजों के बम और बारूद
ढह जाएंगे इन से
जालिमों के किले
(14.01.09: गाजा पर इस्राइली हमले के खिलाफ लिखी कविता)
--[[सदस्य:Shahid|Shahid]] 06:16, 25 अगस्त 2010 (UTC)
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