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यादों के फूल / शाहिद अख़्तर

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{{KKGlobal}}'''यादों के फुल'''{{KKRachna|रचनाकार=शाहिद अख़्तर|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>
...और बरसों बाद
जब मैंने वह किताब खोली
वहां वहाँ अब भी बचे थे उस फूल के कूछ जर्द ज़र्द पड़े हिस्से
जो तुमने कालेज से लौटते हुए
मुझे दिया था
हांहाँ, बरसों बीत गएलेकिन मेरे लिए तो अब भी वहीं थमा है वक्‍तवक़्तअब भी बाकी बाक़ी है
तुम्हारी यादों की तरह
इस फूल की खुशबू ख़ुशबू
अब भी ताजा ताज़ा है इन जर्द ज़र्द पंखुडि़यों पर
तुम्हारे मरमरीं हाथों का
वह हसीं लम्‍स
उससे झांकता झाँकता है तुम्‍हारा अक्‍स
वक्त वक़्त के चेहरे पे
गहराती झुर्रियों के बीच
मैं चुनता रहता हूं हूँ
तुम्‍हारा लम्‍स तुम्‍हारा अक्‍स
तुम्हारी यादों के फुल फूल
कभी आओ तो दिखाएं दिखाएँ
दिल के हर गोशे में
मौजूद हो तुम
हर तरफ गूंजती गूँजती है बस तुम्‍हारी यादों की सदा 
बरसों बाद जब मैंने ...
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