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आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब
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06:07, 27 अगस्त 2010
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर
<ref>अन्गारों का नृत्य</ref>
होने तक!
गम-ए-हस्ती
<ref>जीवन का दुख</ref>
का "असद" किससे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर हाल में जलती है सहर होने तक!
</poem>
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Aadil rasheed
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