गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सीने में बसर करता है ख़ुशबू सा कोई शख़्स / संकल्प शर्मा
3 bytes added
,
21:09, 29 अगस्त 2010
लहराता है उलझे हुए गेसू सा कोई शख़्स।
शाख ऐ
बरगद का
शजर
को देख के वो याद बहुत आया
देखा तो इक हूक सी उट्ठी
,
जब बि था मुझसे मिरे बाजू सा कोई शख़्स।
Aadil rasheed
98
edits