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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>दु;ख में होकर
निपट अकेले
हम सब कुछ सहते हैं
सुख में कोई
साथ न हो तो
फिर आँसू बहते हैं ।
जानोगे तुम
कैसी होती
मन की व्याकुलता है
पता तभी तो
चल पाता है
जब कोई छलता है ।
छले गए हम
फिर भी बोलो
-कब किससे कहते हैं ?
जब तक पंखों-
में ताकत है
दूर देश तक जाना

बाट देखता
जब तक कोई
तब तक वापस आना
देहरी पर जब
तक है कोई
हम तब तक रहते हैं ।
-0-
21 फ़रवरी ,2010

</poem>