1,001 bytes added,
11:18, 30 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>दु;ख में होकर
निपट अकेले
हम सब कुछ सहते हैं
सुख में कोई
साथ न हो तो
फिर आँसू बहते हैं ।
जानोगे तुम
कैसी होती
मन की व्याकुलता है
पता तभी तो
चल पाता है
जब कोई छलता है ।
छले गए हम
फिर भी बोलो
-कब किससे कहते हैं ?
जब तक पंखों-
में ताकत है
दूर देश तक जाना
बाट देखता
जब तक कोई
तब तक वापस आना
देहरी पर जब
तक है कोई
हम तब तक रहते हैं ।
-0-
21 फ़रवरी ,2010
</poem>