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15:43, 30 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित कागद
|संग्रह=आदमी नहीं हैं / ओम पुरोहित कागद
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
उस ने
वह पूरी किताब पढ़ ली
अब वह
पूरी किताब है
मगर
उसे
आज तक
कोई पाठक नहीं मिला।
उस ने
जो किताब पढ़ी थी
उसे अब तक
दीमक चाट चुकी होगी
लेकिन
वह दीमक के लिए नहीं है
खुल जाएगा
एक दिन
सब के सामने
और
बंचवा देगा
अपने ढाई आखर सब को।
</poem>