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14:24, 1 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
कब किसी बाज ने
कबूतर को छोड़ा है
जिसके भी
हाथ लगी
सपनों की गर्दन को
उसी ने मरोड़ा है
किन्तु जो कुछ भी किया
ईश्वर, धर्म, देश
समाजवाद या
अंतरात्मा के नाम पर
और
जो किया
अपने नाम पर
उसे बताने में शर्म
आ......ती है
</poem>