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फूले वनांत के कांचनार / अमोघ

3 bytes added, 10:05, 2 सितम्बर 2010
<poem>
फूले वनांत के कांचनार !
खेतों के चंचल अंचल से आती रह-रह सुरभित बयार।बयार ।
फूले वनांत के कांचनार ।
मिट्टी की गोराई निखरी,
रग-रग में अरुणाई बिखरी,
कामना-कली सिहरी-सिहरी पाकर ओठों पर मधुर भार।भार ।
फूले वनांत के कांचनार !
घासों पर अब छाई लाली,
चरवाहों के स्वर में गाली,
सकुची पगडंडी फैल चली लेकर अपना पूरा प्रसार।प्रसार ।
फूले वनांत के कांचनार !
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