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11:57, 4 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
लोगों ने
हाथ फैलाए
रोटी के लिए
यह आश्वासन देता रहा
सेंकता रहा
अपनी जुबान पर
अथाह रोटियां
मगर
परोसे के वक्त
खाली पड़ी
थाली के पेट आया
वही ठनठन गोपाल।
लोगों ने कहा
रोटियां सेंकने के लिए
आग की जरूरत होता है
और
आग वे ही पैदा करते हैं
जो
आग में जलना जानते हैं
इसलिए
पहले जलना सीखो
और जानो
कि रोटी जुबान की नही।
</poem>