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10:32, 5 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
हम मुहब्बत में ढील देते हैं
दुश्मनी हो तो छील देते हैं
किसकी मंजिल है कितनी दूर अभी
यह पता संगे-मील देते हैं
आज इन्साफ के पुजारी भी
कातिलों को वकील देते हैं
कौन ईमानदार है अब तो
यह सनद भी ज़लील देते हैं
आइना बेजुबान होता है
जब कि चेहरे दलील देते हैं<poem/>