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11:15, 5 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
जानते बूझते अच्छा ही किया था हम ने
उनकी बातों पे भरोसा ही किया था हम ने
जाने क्यों उनको बगावत नजर आई इसमें
उनके कदमों पे तो सजदा ही किया था हम ने
अब न दीदार, न आवाज़, न सपने , न उमीद
सिर्फ़ नुकसान का सौदा ही किया था हम ने
यह अलग बात कि आख़िर में हुई मात हमें
वरना माहौल तो पैदा ही किया था हम ने
फूल को फूल न कहते तो भला क्या कहते
लोग कहते हैं कि बेजा ही किया था हम ने<poem/>